जीवन की आपाधापी में, सब बढ़ते गये, हम [मैं] बढ़ते गये,
कहाँ पहुँचे पता नही, चलते गये - चलते गये
राह मिली ना भूख मिटी, सब भूल गये, चलते गये,
उम्र बढ़ी, फिर भूल गये, क्या याद नही, सब भूल गये
अक्सर सोचा, रुकु ज़रा, मुड़ कर पीछे देखूँ ज़रा
सब बढ़तें गये, हम बढ़तें गये
सब छूट गया, सब टूट गया
जीवन की आपाधापी में, अब जाउ कहाँ, अब रुकु कहाँ,
चलने की मजबूरी हैं, सबसे इतनी दूरी है
सारे अपने पराए हैं, पराए ही अब अपने सायें हैं
कैसे कहूँ क्या भूल गया, अब याद नही कुछ भी
जीवन की आपाधापी में, सब बढ़ते गये, हम बढ़ते गये
Regards
Navrang