Saturday, May 1, 2010

Jivan Kee AapaDhaapi Me / जीवन की आपाधापी में : By Navrang

जीवन की आपाधापी में, सब बढ़ते गये, हम [मैं] बढ़ते गये, 
कहाँ पहुँचे पता नही, चलते गये - चलते गये


राह मिली ना भूख मिटी, सब भूल गये, चलते गये,
उम्र बढ़ी, फिर भूल गये, क्या याद नही, सब भूल गये


अक्सर सोचा, रुकु ज़रा, मुड़ कर पीछे देखूँ ज़रा
सब बढ़तें गये, हम बढ़तें गये

सब छूट गया, सब टूट गया

जीवन की आपाधापी में, अब जाउ कहाँ, अब रुकु कहाँ,


चलने की मजबूरी हैं, सबसे इतनी दूरी है
सारे अपने पराए हैं, पराए ही अब अपने सायें हैं

कैसे कहूँ क्या भूल गया, अब याद नही कुछ भी
जीवन की आपाधापी में, सब बढ़ते गये, हम बढ़ते गये


Regards
Navrang

9 comments:

Rector Kathuria said...

बस चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही है...टूट टूट कर रोज़ फिर से जुडना..शायद यही है जिंदगी.... आपकी पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी हैं....

अक्सर सोचा, रुकु ज़रा, मुड़ कर पीछे देखूँ ज़रासब बढ़तें गये, हम बढ़तें गये
सब छूट गया, सब टूट गया
जीवन की आपाधापी में, अब जाउ कहाँ, अब रुकु कहाँ,

चलने की मजबूरी हैं, सबसे इतनी दूरी हैसारे अपने पराए हैं, पराए ही अब अपने सायें हैं

....ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है....मैंने आज आपका ब्लॉग पहली बार देखा..इसके लिए चिठ्ठाजगत और समीर लाल जी का भी आभारी हूँ....वह हर रोज़ अच्छे अच्छे ब्लागों से परिचय करवाते रहते हैं.....
कभी संभव हो तो लुधियाना का रुख भी करिए...

आपका अपना ही...
रेक्टर कथूरिया

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Navrang said...

Kathurai jee,
Bahut Bahut Dhanyavad..... Aapka comment padh kar kaafi achcha lag raha hai....

Pure Dil se Dhanyavad... :-)

@E-Guru:

Gurujee.... Aapki Tipanni & Comment dono ke liye bahut shukriya.... Waise Work Verification jaan bujh ke lagaya hai maine... :-)

@Ajay
Ajay jee... bilkul... kyon nahi.. :-)

Regards
Navrang
http://navrangblog.blogspot.com

Navrang said...

Comments on Twitter :

@evolveharsh @Navrang This is so honest!! and so true!!! I loved it :) Thx

____

@fara_s @Navrang gr8 Piece

_______

@rpcoolravi @Navrang apki jeevan me apadhapi bot khub lagi.wah kaviraj wah

Jayram Viplav said...

" बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "

हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register,

साथ हीं जनोक्ति द्वारा संचालित एग्रीगेटर " ब्लॉग समाचार " http://janokti.feedcluster.com/ से भी अपने ब्लॉग को अवश्य जोड़ें .

Paavani said...

bahut sahi kaha! So much pointing to corporate leaders, who are so busy and hardly have time to look back and do what they actually used to like.

Navrang said...

Hey Paavani,

Thanks for your comment. You said it right that it's point to busy people but honestly I wrote it on my own situation... :-)

Regards
Navrang
http://navrangblog.blogspot.com

Rupesh said...

Badut Badhiya , Deil se Dil ko .!

Navrang said...

Rupesh Bhaiya.... Aapko achcha laga, hame khusi hooyee....

Regards
Navrang
http://navrangblog.blogspot.com

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